सुबह पति की आंख खुली, तो उसने कहा, पागल, तू सो गयी होती! उसने कहा, यह संभव न था। तुम्हें प्यास थी, तुम कभी भी उठ आते! तो तू उठा लेती, पति ने कहा। उसने कहा, वह भी मुझसे न हो सका, क्योंकि तुम थके भी थे और तुम्हें नींद भी आ गयी थी। तो यही उचित था कि तुम सोए रहो, मैं गिलास लिए खड़ी रहूं। जब नींद खुलेगी, पानी पी लोगे। नहीं नींद खुलेगी, तो कोई हर्जा नहीं, एक रात जागने से कुछ बिगड़ा तो नहीं जाता है।
यह बात पूरे गांव में फैल गयी। सम्राट ने गांव के उस पत्नी को बुलाकर बहुत हीरे—जवाहरातों से स्वागत किया। उसने कहा कि ऐसी प्रेम की धारा मेरी इस राजधानी में थोड़ी भी बहती है, तो हम अभी मर नहीं गए हैं; अभी हमारी संस्कृति का प्राण जीवित है, स्पंदित है।
पड़ोस की महिला इससे बड़ी ईर्ष्या से भर गयी कि यह भी कोई खास बात थी! एक रात गिलास हाथ में लिए खड़े रहे, इसके लिए लाखों रुपए के हीरे—जवाहरात दे दिए हैं! यह भी कोई बात है?
उसने अपने पति से कहा कि देखो जी, आज तुम थके—मांदे होकर लौटना। आते से ही बिस्तर पर बैठ जाना। पानी मांगना। मैं पानी लेकर आ जाऊंगी। लेकिन तुम आंख बंद करके सो जाना और मैं खड़ी रहूंगी रातभर। और सुबह जब तुम्हारी आंख खुले, तो तुम इस—इस तरह के वचन मुझसे बोलना, कि तू क्यों रातभर खड़ी रही? तू उठा लेती। मैं कहूंगी, कैसे उठा सकती थी? तुम थके —मांदे थे। कि तू सो जाती! तो मैं कहूंगी, कैसे सो जाती? तुम्हें प्यास लगी थीं। और इतने जोर से यह बात चाहिए कि पड़ोस में लोगों को पता चल जाए, सुनाई पड़ जाए। क्योंकि यह तो हद हो गयी! जरा रातभर... और किसको पक्का पता है कि खड़ी भी रही कि नहीं, क्योंकि रात सो ली हो, झपकी ले ली हो और फिर सुबह उठ आयी हो, और बात फैला दी हो! मगर हमें भी यह सम्राट से पुरस्कार लेना है।
पति सांझ थका—मादा वापस लौटा। लौटना पड़ा, जब पत्नी कहे, थके—मांदे लौटो, लौटना पड़ा। आते ही बिस्तर पर बैठा। कहा, प्यास लगी है। पत्नी पानी लेकर आयी। पति आंख बंद करके लेट गया। कोई नींद तो आई नहीं, लेकिन मजबूरी है। जब पत्नी कहती है, तो मानना पड़ेगा। और फिर लाखों—करोड़ों के हीरे—जवाहरात उसके मन को भी भा गए।
अब पत्नी ने सोचा कि बाकी दृश्य तो सुबह ही होने वाला है। अब कोई रातभर बेकार खड़े रहने में भी क्या सार है? और किसको पता चलता है कि खड़े रहे कि नहीं खड़े रहे? वह भी सो गयी गिलास—विलास रखकर।
सुबह उठकर उसने जोर से बातचीत शुरू की कि पड़ोस जान ले। सम्राट के द्वार से उसके लिए भी बुलावा आया, तो बहुत प्रसन्न हुई। लेकिन जब दरबार में पहुंची, तो बड़ी हैरान हुई; सम्राट ने वहा कोड़े लिए हुए आदमी तैयार रखे थे, और उस पर कोड़ों की वर्षा करवा दी। वह चीखी—चिल्लाई कि यह क्या अन्याय है? एक को हीरे—जवाहरात; मुझे कोड़े? किया मैंने भी वही है!
सम्राट ने कहा, किया वही है, हुआ नहीं है। और होने का मूल्य है, करने का कोई मूल्य नहीं है। और जीवन में यह रोज होता है। अगर हृदय में स्पंदन न हो रहा हो, तो तुम कर सकते हो, लेकिन उस करने से क्या अर्थ है?